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पिता की मौ’त के बाद दो वक़्त की रोटी के लिए मां के साथ खेतों पर किया काम, 19 साल बाद बना IAS

कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती और इस मिसाल को सच कर दिखाया है तमिलनाडु के जिले थनजावूर के छोटे से गांव चोलागनगूडिक्कडू में पैदा हुए एलमबहावत नाम के एक शख्स ने, एलमबहावत 19 साल तक संघर्ष किया और आईएएस अफसर बनकर साबित कर दिया कि मेहनत करने वालों की हार नहीं होती है।

तमिलनाडु के जिले थनजावूर के छोटे से गांव चोलागनगूडिक्कडू के पिता पेशे से ग्राम प्रशासनिक अधिकारी और मां एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं और इस दौरान उनका बचपन सामान्य बीता। इसी बीच, 1997 में उनके पिता का नि’ध’न हो गया पिता के निधन के बाद उनका परिवार आर्थिक तंगी की चपेट में आ गया । मजबूरन एलमबहावत को अपनी 12वीं की पढ़ाई छोड़कर मां के साथ खेतों पर करनी पड़ी ताकि दो वक़्त की रोटी का इंतजाम हो सकें। लेकिन इसी बीच उन्होंने कुछ न कुछ जुगाड़ करके अपनी पढ़ाई जारी रखी।

मद्रास यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में ग्रेजुएट होने के बाद देरी न करते हुए वो सरकारी नौकरी की तैयारी में लग गए। लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल सकी। इसी बीच एलमबहावत ने तय किया कि वो आईएएस अधिकारी बनेंगे। लकिन घर की मज़बूरी के कारण वो सुबह से शाम को खेतों पर काम करते और बाकि वक़्त  सार्वजनिक लाइब्रेरी में पड़ने में बिताते और ऐसे ही मेहनत करते उन्होंने एक के बाद एक कई तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमिशन एग्जाम पास किए और स्टेट गर्वमेंट ग्रुप-1 सर्विस ज्वॉइन करने के बाद भी वो आईएएस की तैयारी में जुटे रहे।

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5 बार मेन्स और तीन बार इंटरव्यू राउंड में फेल होने के बाद भी एलमबहावत ने उम्मीद नहीं छोड़ी। लेकिन इस दौरान सारे प्रयास समाप्त हो गए।  तभी 2014 में केंद्र सरकार ने उन लोगों के लिए दो और अटेंप्ट का मौका दिया जो सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए थे। इस मौके पर एलमबहावत ने चौका मारा दिया ।

2015 में उन्होंने आईएएस के लिए अपना अंतिम प्रयास किया और सफल रहे। आईएएस स्टेट कैडर में वो ऑल इंडिया 117वीं रैंक लेकर आए थे। और उसका आईएएस बनाने का सपन पूरा हो गया। वहीं आज वो देश के जाने-माने सरकारी अफसर हैं और युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी बन ये हैं।